जुबान, तलब, और दुनिया

वो कौन सी जुबान है जो इस जुबान तो उतरीं पर उस जुबान नहीं|
वो कौन सी तलब है जो इसे तो है और उसे नहीं| 
वो कौन सी दुनिया है जो सिर्फ मेरी हैं और है किसी की नहीं| 

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