लेखनी में
कुछ लिखना हो तब।
एक कलम और कागज लें लेता हूं।
और सोचता हूं कि क्या लिखूं।
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इसी सोच में कलम ठहरीं बस कागज से कुछ होंठ दूर होती है।
रोशनी में दोनों की बस परछाईं सी नजर आती है।
लेकिन क्यों कुछ लिखा नहीं जाता?
शायद हैं ये लेखक का झूठ।
अपने तक क्या रखें और क्या बतलाएं?
यही आज़ भी रीत है; इस लेखक का सुना संगीत है।
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